प्रायः हम सब ने यही सुना और पढ़ा है कि शिरडी में जिस नीम के वृक्ष के नीचे बाबा को सर्वप्रथम ध्यान अवस्था में देखा गया था, उसके पत्ते मीठे हैं। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? यदि आप उस वृक्ष के पत्ते खाएँ, तो वे कड़वे ही लगेंगे, न कि मीठे।
दरअसल, यह विचार उपासनी महाराज द्वारा लिखे गए श्लोक का गलत अर्थ निकालने का परिणाम है:
सदा निंबवृक्षस्य मूलाधिवासात्, सुधास्त्राविणं तित्तमप्यप्रियं तम् ।
तरुं कल्पवृक्षाधिकं साधयन्तं, नमानीश्वरं सद्गगुरुं साईनाथम् ।।
बाबा ने नीम के वृक्ष के माध्यम से हमें एक गहरा आध्यात्मिक संदेश दिया है। नीम के वृक्ष की कड़वाहट हमारे अंदर की कटुता, स्वभाव की कड़वाहट, और हमारे दोषों का प्रतीक है। जब हम अपने जीवन में किसी सच्चे गुरु के सानिध्य में आते हैं, तो हमारे आचरण में धीरे-धीरे मिठास आने लगती है, और हमारी कटुता में बदलाव होता है। यह मिठास बाबा के प्रेम, उनकी करुणा, और उनके मार्गदर्शन का प्रभाव होता है।
साई सच्चरित्र में भी बाबा ने इस बात को उदाहरण देकर समझाया है। जब बाबा को शिरडी में सर्वप्रथम देखा गया, तो वे नीम के वृक्ष के नीचे ध्यान में बैठे थे। कुछ समय बाद वे वहाँ से अंतर्ध्यान हो गए और फिर जब उन्हें चांद पाटिल द्वारा द्वितीय बार देखा गया, तो वे एक आम के वृक्ष के नीचे बैठे मिले।
यह परिवर्तन मात्र स्थान परिवर्तन नहीं था, बल्कि जीवन परिवर्तन का प्रतीक था। बाबा ने हमें सिखाया कि चाहे हमारे जीवन में कितनी भी कड़वाहट क्यों न हो, जब हम सच्चे गुरु के सानिध्य में आते हैं, तो वही कड़वाहट धीरे-धीरे मिठास में बदल जाती है। गुरु का सानिध्य हमें ‘नीम’ से ‘आम’ बनने की यात्रा कराता है।
यही जीवन यात्रा है—कटुता से मिठास तक, नीम से आम बनने तक, और इसी में सच्ची भक्ति, प्रेम, और गुरु कृपा की महिमा छिपी है।
ॐ साईं राम।